Monday 27 April 2020

                                      वकत 
वकत की सुई कभी रुकती नहीं ,
इसकी जंजीरे कभी टूटती नहीं ,
अपने साथ सबको भगाती ये ,
हमारे ख़यालो को कहि और दभनाती  ये। 

न जाने किस जगह, कोनसे पहर,
कैसे कैसे गोते लगवाती इसकी लहर,
सोचते कुछ और करवाती कुछ इसकी केहर। 

जिसके सहारे छुपते थे हम , वही छुप  गया है आज। 
जिसके साथ चलते भूल गए खुद को, वही ठहर गया है आज। 

ये जितना दूर है , उतना ही पास भी ,
ये जितना कुरुर है , उतना ही दास भी ,
व्या करू कैसे इसकी नियत , नियति भी डरती जिसे। 

देखो , परखो , सम्भालो इसको ,
वकत ने दिया है वकत तुमको  ,
तोफे में दिया है आइना हमको ,
नहीं होते नसीब सबके ऐसे,  समझो इसको , समझो इसको। 
                                                             
                                                          अर्ची सौरभ  

Thursday 1 March 2018

hey! So all of us are now ready to go colourful even some of us are already coloured. No doubts Holi is a festival of joy in fact in this we are allowed to eat non-veg, trust me for me it is most important :-p. According to our rituals, its our new year, some buy new cloth some will make fun of that but for all of us, Holi owns same meaning and joy. As I m writing after a long gap I wanted to pen down my feelings for this amazing festival.

होली 
रंग, गुलाल,पकवान है इसकी पहचान।
रंगो की परिभाषा है ये त्योहार।
सबने बनाये रंगो के अनेक मतलब ,
कभी लाल खतरा तो कभी सुहाग ,
कभी सफ़ेद उदासी तो कभी स्वाभिमान।
इंसानो  ने बनाया रंगो की अपनी परिभाषा ,
पर हर रंग का वास्तव स्वभाव
दिखाता होली का भाव।

जहाँ चेहरे पे काला रंग लगे तो हो बदनामी ,
वही होली में न लगे पक्का काला रंग तो हो हैरानी। 
जहाँ लाल बने ख़ुशी , हरा बने उल्हास,
वही चमकीले रंगो का क्या कहना ,
लगाने वाला हो हीरो वही छूटाने वाला हो बेहाल। 
कीचड़ ,कादो ,मिट्टी जिनसे रहते सब दुर ,
जो कभी लगे चप्पल पे तो न हो मन्जूर ,
होली बड़ा दे उनका भी गुरुर । 

घर की होली होती सबसे प्यारी 
क्योकि मिले दही वाड़े और कस्टर्ड की प्याली। 
होलिका दहन में मिले पकोड़ो की थाली ,
हो साथ दाल पूरी ,चिकन,मटन ,पकवानो की त्यारी।  
सफाई लगे जितनी प्यारी ,होली में रंगो के निसानो उतनी न्यारी। 

घर की होली तो सबने खेली, जो कभी खेली छात्रावास वाली होली,
आती  तो होगी घर के पकवानो कि  याद ,
पर फुरसत कहाँ याद करने की। 
शुबह से दोपहर , रंग और गुलाल ,
टमाटर , अंडे ,बनते दोस्तों के हतियार। 
शाम से रात , झरनो के पानी से रंगो का मिलाप। 
गानो से पानी के बूंदो का ताल ,
उसमे थिरकती रंगों  का खेल। 
दोस्तों का चेहरा और उनका कपड़ा बना ख़ुशी का चित्रकला।
यहाँ मिलता कही प्यार का तोफा ,
तो कही भांग का प्याला। 
कॉलेज की होली होती बड़ी न्यारी,  ,
इसकी लीला अत्यंत निराली। 
अर्चि सौरभ 

Saturday 27 August 2016

Hey Buddies,
Hope you all are enjoying your life. Today I wanna drag your attention toward women harassment. I am not saying anything to those who are the culprits although they need punishment, I think there are lots of people who talk about them but THINK, is it working????  a huge question mark. 'Society'  in these case this is the prison for them, isn't it? We hear lots of cases but are they only exists? NO, millions more but they are not reported and sometimes we didn't count them under this categories. Whenever we talk about harassment people think it's about sexual abuse, No there are lots more.......although after reading these many boys may say that why harassment word is attached with women only, there are boys also and people make fun of them whenever they use a statement like "I m harassed". I am not specific to any gender, its just I met a girl who is boldly surviving in this society and also she is earning respect at least in front of her by each and every person including those who were against her once. This all happens because she raises her voice with brain. THIS IS inspired by her....... I'm no one to advise but can request to all of you to support a person if in case your heart says or else at least don't act/ say any harsh word to that person who is trying to survive.

भीड़ की तन्हाई ,मासूमियत की गहराई
क्या मान सका है कोई , जान सका है कोई ,
सिर्फ ऊपरी साँचे से , सिर्फ बाहरी दिखावे से ,
नही ,कभी नही।
कहते है , जो दीखता ,वो सच नही ,
मत करो यक़ीन जो सुना हो ,
पर क्या जो महसूस किया हो ?

वो दर्द, वो अस्क ,वो पछतावा ,
जो अपना न हो कर भी अपना था ,
एक तिरिया , जिसने कभी पुकारा , चिल्लया भी था,
और ये समाज , उसे ठुकराया भी था।

उसी ने सबको समझाया था स्त्री एक हवा है,
मत भूलो इनकी फिदरत ,
आज तुम्हारे अनुरूप है ,
तो ज्यादा दबाब से बन सकती वो अंधी।
ऐसी ,जो बर्बाद करदे तुम्हे।
जैसे रूप दुर्गा का गोरी और चामुंडा।
वो सांत है सम्मान  करो, वरना उसमें भी अभिमान है।



Friday 5 August 2016

As it is my first post I wanted to start it as this idea came to my mind. I think everyone in this world had this feeling at least once in their life but don't worry this is normal...and trust me once when you accept it you will feel the fresh air of positivity in yourself.......
कौन हु मैं 
 

ये कैसे खाली पन्नें हैं , जो हवा के सरसराहट में शोर कर रहे है। 

चाह है कुछ करु , कुछ लिखु इनपे ,पीरोउ माला इन अल्फाज़ो से। 

एक अज़ीब सी बेचैनी है ,ना आराम है ही कुछ करने की इक्छा। 

क्या करू मैं , ये कैसी कस्मकस है , सब करके देखा कहीं चैन नही। 



खा धुडु खुदको , कैसे जानु खुद को , किसे पुछु , कहां है मेरा जबाब। 

सोच था जान लिया मैंने खुदको ,मिल गयी है वो रहा जिसपे चलना था मुझको। 

पर क्यों कदम रखते ही लड़खड़ा रहे है। 

क्यों धुंध छा रहा है , क्या चाहते है ये मन ,कहा जाना है इन्हे

क्या पूरी जिंदगी राह की तलाश करुँगी। 

क्या मंजिल नही मिलेगी मुझे। 



कौन हु मैं , क्या हु मैं  ,क्या है मेरा अस्तित्ब। 

कभी लगता यही है वो राह ,कभी लगे ना ना ये तो है एक छलावा दलदल सा,

इस छल का तोड़ कहा धुडु मैं। 

कैसे जानू खुद को , कैसे पहचानु खुदको।




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