Friday 5 August 2016

As it is my first post I wanted to start it as this idea came to my mind. I think everyone in this world had this feeling at least once in their life but don't worry this is normal...and trust me once when you accept it you will feel the fresh air of positivity in yourself.......
कौन हु मैं 
 

ये कैसे खाली पन्नें हैं , जो हवा के सरसराहट में शोर कर रहे है। 

चाह है कुछ करु , कुछ लिखु इनपे ,पीरोउ माला इन अल्फाज़ो से। 

एक अज़ीब सी बेचैनी है ,ना आराम है ही कुछ करने की इक्छा। 

क्या करू मैं , ये कैसी कस्मकस है , सब करके देखा कहीं चैन नही। 



खा धुडु खुदको , कैसे जानु खुद को , किसे पुछु , कहां है मेरा जबाब। 

सोच था जान लिया मैंने खुदको ,मिल गयी है वो रहा जिसपे चलना था मुझको। 

पर क्यों कदम रखते ही लड़खड़ा रहे है। 

क्यों धुंध छा रहा है , क्या चाहते है ये मन ,कहा जाना है इन्हे

क्या पूरी जिंदगी राह की तलाश करुँगी। 

क्या मंजिल नही मिलेगी मुझे। 



कौन हु मैं , क्या हु मैं  ,क्या है मेरा अस्तित्ब। 

कभी लगता यही है वो राह ,कभी लगे ना ना ये तो है एक छलावा दलदल सा,

इस छल का तोड़ कहा धुडु मैं। 

कैसे जानू खुद को , कैसे पहचानु खुदको।




feel free to comment .......

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