Monday 27 April 2020

                                      वकत 
वकत की सुई कभी रुकती नहीं ,
इसकी जंजीरे कभी टूटती नहीं ,
अपने साथ सबको भगाती ये ,
हमारे ख़यालो को कहि और दभनाती  ये। 

न जाने किस जगह, कोनसे पहर,
कैसे कैसे गोते लगवाती इसकी लहर,
सोचते कुछ और करवाती कुछ इसकी केहर। 

जिसके सहारे छुपते थे हम , वही छुप  गया है आज। 
जिसके साथ चलते भूल गए खुद को, वही ठहर गया है आज। 

ये जितना दूर है , उतना ही पास भी ,
ये जितना कुरुर है , उतना ही दास भी ,
व्या करू कैसे इसकी नियत , नियति भी डरती जिसे। 

देखो , परखो , सम्भालो इसको ,
वकत ने दिया है वकत तुमको  ,
तोफे में दिया है आइना हमको ,
नहीं होते नसीब सबके ऐसे,  समझो इसको , समझो इसको। 
                                                             
                                                          अर्ची सौरभ